महोबा में संपन्न हुआ कजली मेला : लोगो में हर्षोल्लास 🥰

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महोबा: बुंदेलखंड के महोबा जिले में रक्षाबंधन के अगले दिन राखी बांधने की प्राचीन और ऐतिहासिक परंपरा है। इस दिन वीर योद्धा आल्हा-ऊदल की वीरता को याद करते हुए विशाल कजली महोत्सव विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसमें हाथी, ऊंट और नाचते हुए घोड़ों के साथ झांकियां निकाली जाती हैं. इसे देखने के लिए लाखों की भीड़ जुटती है। उत्तर भारत में अपनी आन, बान और शान के लिए मशहूर महोबा के ऐतिहासिक कजली मेला 842वां उद्घाटन सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल (Pushpendra Singh Chandel) और डीएम-एसपी ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया है।

इस मेले में यूपी के जिलों से ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं।

 इस मेले की खासियत शोभा यात्रा होती है, जिसको देखकर आल्हा उदल और उनके गुरु ताला सैय्यद को याद किया जाता है. मगर आज भी यह उत्तर भारत का मशहूर मेला राजकीय नहीं हो पाया।, जिसका मलाल भी यहां के लोगों को है, मगर जनप्रतिनिधि इसे जल्द राजकीय मेला कराने के प्रयास में लगे हुए हैं। शहर के हवेली दरवाजे से शुरू हुई शोभायात्रा में लाखों की भीड़ देखने को मिली। शोभायात्रा में हाथी पर सवार आल्हा और घोड़े पर बैठे उदल सहित आल्हा खंड में लिखे सभी इतिहास के पात्रों की झांकिया देखने के लिए लोग उमड़ पड़े।

जुलुस में आधा सैकड़ा घोड़े नृत्य करते हुए लोगों का मन मोह रहे थे। इस दौरान शौर्य और वीरता के महाकाव्य आल्हा के फिजाओं में गूंज रहे ओजस्वी स्वरों के बीच समूचे जनपद में भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार भी पारम्परिक हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने कहा कि ये देश का ऐतिहासिक विशेष महत्व का मेला है। ये एक परम्परा है जिसे नगर पालिका भव्य रूप से आयोजित करती है. इस मेले को राजकीय मेला कराने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है।

सद्भावना का प्रतीक माना जाता है मेला

यही वजह है कि इसी विजय पर्व की याद में यहां एक दिन बाद बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाती है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में पारम्परिक लोक नत्य के साथ लोगों के मनोरंजन के लिए अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस बार भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और कवि सम्मलेन का आयोजन होना है. यहां हिंदू-मुसलमान और सिख-इसाई सभी कजलियों को पवित्र मानकर सम्मान करते हैं. महोबा का यह कजली महोत्सव सद्भावना का प्रतीक माना जाता है।

सौजन्य: abplive

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