चरखारी प्रसिद्ध हैं अष्टधातु की तोपो के लिए

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चरखारी रियासत एक ओर जहां अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए बुंदेलखंड के कश्मीर के नाम से विख्यात है। वहीं यह रियासत अपनी जोरदार मारक क्षमता वाली डरावनी तोपों के लिए भी जानी जाती थी। यहां पर भगवान कृष्ण को प्रतिदिन तीन बार तोपों की सलामी दी जाती थी।

अष्टधातु की तोपों के लिए प्रसिद्ध रहा है चरखारी

चरखारी दुर्ग की सैन्य व्यवस्था चाक चौबंद रखने के लिए और दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए किले के अंदर अलग-अलग मारक क्षमता की तोपें थीं। तोपों के नाम ही उनकी भयावहता को दर्शाने के लिए काफी हैं। तोपों के नाम ही इतने डरावने थे जो उनकी मारक क्षमता का स्वयं बखान करते थे। चरखारी रियासत में गर्भ गिरावन, धरती धड़कन, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी व काली सहाय जैसी तोपें थीं, जिनकी दूर दूर तक ख्याति थी। कोई भी दूसरा राजा चरखारी में हमला करने के पहले कई बार सोचा करता था।

फिलहाल बची है सिर्फ एक तोप

वक्त के थपेड़ों के बाद चरखारी में केवल एक तोप काली सहाय बची है जिसकी मारक क्षमता 15 किलोमीटर है। सैकड़ों वर्ष पहले तोप की यह मारक क्षमता बहुत मायने रखती थी। चरखारी रियासत में प्रतिदिन तीन बार अलग अलग समय पर तोपें दागी जाती थीं। पहली तोप सुबह चार बजे दागी जाती थी। यह तोप लोगों को जगाने के लिए दागी जाती थी। यह एक तरह से अलार्मिंग तोप हुआ करती थी। दूसरी तोप दोपहर में 12 बजे दागी जाती थी। इस समय तोप दागने का मकसद लोगों को विश्राम के लिए सूचित करना होता था। तीसरी तोप रात में सोने के लिए दागी जाती थी। ताकि लोग रात में सो जाएं और आराम करें। तीसरी तोप दागने के बाद चरखारी नगर का मुख्य फाटक बंद कर आवागमन बंद कर दिया जाता था।


भगवान कृष्ण को तीन बार दी जाती थी तोपों से सलामी

तीन बार तोपों को दागने के पीछे एक बड़ा कारण मंदिरों के पट खुलने, मंगला आरती, मंदिर के पट बंद करने व शयन आरती के लिए लोगों को सूचित करने व भगवान कृष्ण को तोपों की सलामी देना था। चरखारी का मंगलगढ़ दुर्ग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण पूरा दुर्ग कई सालों से सेना के हवाले है। आम आदमी के लिए दुर्ग में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।


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