आल्हा ऊदल की कुल देवी हैं बड़ी चंद्रिका

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मां चंद्रिका देवी की भव्य प्रतिमा

प्राचीन कथाओं में बड़ी चंद्रिका मंदिर मदन सागर सरोवर के पास ताराचंडी सिद्धपीठ के रूप में स्थित है। इन्हें ही बड़ी चंद्रिका देवी की ख्याति मिली है। मूर्ति स्थापना बेहद प्राचीन है। चंदेल नरेश चंद्रवर्मन ने खजुराहो में यज्ञ समापन कर 831 ईस्वी में महोबा आकर देवी को अपना इष्ट मान मूर्त रूप दिया। चंद्रिका देवी के आशीष से ही चंदेलों का विजय अभियान प्रारंभ होने की मान्यता है। इनका राज्य विस्तार 400 सालों तक चला। वीर आल्हा ऊदल पर बड़ी चंद्रिका की विशेेष कृपा रही।


51 शक्तिपीठों में मां चंद्रिका (ताराचंडी) भी शामिल हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार महिषासुर के प्रबल सेनापति चंड से देवी ताराशक्ति का उत्तराखंड में घोर संग्राम हुआ। चंड भागकर महोबा आ गया। यहां भी संग्राम जारी रहा। आयुध प्रहारों से चंड के न मरने पर देवी को आश्चर्य हुआ।

मूर्तिकार ने देवी की 18 भुजाओं मे से 17 में विविध आयुध धारण कराए हैं। मुखार बिंदु पर एक भुजा आश्चर्यरत रूपायित की है। अंत में देवी के घातक प्रहार से आहत होकर चंड कैमूर विंध्य पर्वत श्रंखला की ओर भागा। यहां उसका वध हुआ। देवी को दैत्य चंड को चरणों तले दबाकर मुखारबिंदु के ऊपर विशाल गज को शक्ति का प्रतीक उत्कीर्ण कर रूपायित किया गया है।

:Amarujala.com

 

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