वर्ष 1182 में रक्षाबंधन के दिन दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने महोबा में चढ़ाई कर दी थी। कीरत सागर तट पर दिल्ली नरेश व महोबा के वीर आल्हा-ऊदल के बीच भीषण युद्ध हुआ था। इसमें आल्हा-ऊदल ने दिल्ली नरेश को धूल चटा दी थी। तभी से ऐतिहासिक कीरत सागर तट पर रक्षाबंधन के दूसरे दिन से ऐतिहासिक कजली मेले का आयोजन होता चला आ रहा है।
मेले में प्रतिवर्ष लाखों की भीड़ उमड़ती थी। एक सप्ताह तक दिन रात कई कार्यक्रम चलते थे, लेकिन इस वर्ष कीरत सागर का वैभवशाली अतीत कहीं खो गया है। लोग कीरत सागर को सिर्फ सब्जी मंडी के रूप में जानते हैं। वे रोज सुबह तट पर सब्जी लेने आते हैं और मुंह फेरकर चले जाते हैं। सब्जी वाले गंदगी तट पर ही फेंक देते हैं।
कजली मेले को लेकर हर वर्ष एक माह पहले से ही तैयारियां तेज हो जाती थी। आल्हा-ऊदल समेत सभी प्रतिमाओं का रंग रोगन होता था। इस बार कोरोना संक्रमण के चलते मेला स्थगित कर दिया गया है। इसलिए पालिका प्रशासन ने वीर आल्हा ऊदल की प्रतिमाओं की पुताई कराना भी मुनासिब नहीं समझा। इससे लोगों में आक्रोश है।
तेरहवें चंदेल नरेश कीर्ति वर्मन ने सन 1060 में विशाल तालाब का निर्माण कराया था। इसीलिए तालाब का नाम कीर्ति सागर पड़ा जो बाद में कीरत सागर हो गया। कीर्ति वर्मन ने उस समय की चंदनौर नदी के पानी को रोककर तालाब तट पर विशाल बांध बनवाया था। जिसे बनाने में 30 साल का समय लगा। तब आबादी बेहद कम थी लेकिन कीर्ति वर्मन जल संरक्षण को लेकर बहुत गंभीर थे।
कीरत सागर में फेंकी गई थी पारस पथरी
बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर बताते है कि चंदेल शासकों के पास पारस पथरी थी। जिसके छूने से लोहा सोना बन जाता था। दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने हार का बदला लेने के लिए महोबा में चढ़ाई कर दी थी। तब राजा परमाल ने पारस पथरी को कीरत सागर के गहरे पानी में फिकवा दिया था। इस बात का जिक्र आल्हा खंड में भी किया गया है।
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:photo- khabarlehriya